Thursday, April 30, 2015

एक खत दुश्मन के नाम

मैं तो जीना चाहता था ,
एक गुमनाम सी जिंदगी ,
हर लबों पे मेरा नाम बसाने के लिए,
ऐ दोस्त शुक्रिया !
मैं  तो चला जा रहा था,
मदमस्त सुनसान सी गली में,
इस भीड़ भरी बस्ती में लाकर ,
अनेकों हमराह दिलाने के लिए ,
ऐ दोस्त शुक्रिया !
मैं तो खोया था, मगन था,
एक फूल की ही खुशबू मे ,
अनेकों गुलदस्ते दिलाने के लिए ,
ऐ दोस्त शुक्रिया !
गर तू न होता तो,
मेरे जज्बात,मेरे अफ़साने ,
लोगों तक पहुँचते कैसे ?
मुझे लोगों के बीच,
 साबित करवाने के लिए ,
ऐ दोस्त शुक्रिया !
अच्छा जीवन जीना है तो ,
दोस्त ही काफी नहीं ,
दुश्मनों का होना भी ,
बेहद जरुरी है । 
मुझे तरक्की पे तरक्की,
 दिलाने के लिए ,
ऐ दोस्त शुक्रिया !
तू न होता तो मैं ,
गुमनामी के ढेर में खो जाता,
मुझे इस तरह से ,
महफ़िलों में सजाने के लिए ,
ऐ दोस्त तेरा शुक्रिया! 

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