Tuesday, April 7, 2015

एक नई सुबह

 सुबह हुई और दिल जागा ,
किसी की चंचल हँसी से,
ये तन-मन खिल गया ,
किसी के आँखों के स्पर्श से ही ,
सारी  रुसवाई जाती रही ,
और करुणा की वही आवाज,
पुनः बुलाने लगी ,
ये कर्मभूमि और ये,
हिम्मत की बुलंदिया , 
पुनः मन को लुभाने लगी ,
साथ ही हजारो भूखे रूठे लोगों की ,
छवि आखों में आने लगी,
जाने कितने असहायों की,
करूँण  ध्वनियां सताने लगी,
उठ खड़ी हुई मैं  मुझसे,
करूँण  दृश्य न देखा गया ,
चल पड़ी मैं उन राहों में,
जहाँ से ये आवाजे आ रही थी ,
मगर उन राहों में मैंने ,
कई महारथियों के मेले,
सजे सवेरे और अलबेले ,
अंजानों से जाते देखा,
और यह कहकर इतराते देखा कि ,
ये सब कर्मों का ही फल है,
मगर अफ़सोस ,
उन्हें मालुम नहीं कि ,
कल का आज ही ,
आज का कल है,  
जो कर्म ही न जानता हो,
वह कर्मफल क्या जानेगा ?
जिसने न दर्द उठाया हो,
औरों का दुःख कैसे मानेगा ?
ऐसे ही कर्मों के फल में ,
ये महारथी न पड़ जायें ,
जो पग अम्बर पर पड़ते हैं ,
दलदल में कहीं न धँस  जाएँ,
तब ये भी चीखेंगे ऐसे ही,
ऐसे ही मेले गुजरेंगे,
 जो आज इन्होंने ने सोचा है,
कल वे भी ऐसा ही सोचेंगे,
यारों ऐसे न मुँह मोड़ो ,
टूटे दिल को तुम,
और न तोड़ो,
इन चित्कारों ने भी कभी ,
चंचल सी हँसी बिखराई  थी ,
ये भी तो कभी सुख भोगी थे जो ,
आज दुखों को भोग रहें हैं,
अपनी बीती कहकर ये ,
तुमको भी खुद से जोड़ रहे हैं,
थोड़ी सी इनपे नजर कर लो,
सुख देकर इनका दुःख लेलो,
फिर इस जीवन में इक पल में ही,
सब कुछ तुम्हे मिल जाएगा ,
मरने पर जाने क्या होगा ,
जीते जी अमर हो जाएगा,
यही तो जीवन संग्राम है ,
जो इतना न समझ पाया ,
तो  जीवन सारा व्यर्थ गया ,
तू क्यूँ  इस दुनिया में आया? 

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