दोस्तों हम सब बचपन से सुनते आ रहे है की हमें दूसरों की अच्छाई को अपनाना चाहिए लेकिन हम इसे तभी तो अपनाएंगे जब हम औरों की अच्छाई का सम्मान करेगे । जबकि ऐसा होता नहीं है। हमारे देश में जितना विरोध अच्छे व्यक्ति का होता है उतना विरोध बुरे लोगो का नहीं होता । यदि ऐसा होता तो हमारा देश स्वर्ग बन गया होता । हम अच्छे व्यक्ति पर जितना शक करते है यदि बुरे लोगो पर इतना शक करे तो शायद वह अच्छा व्यक्ति बन जाये । हम अच्छे व्यक्ति को जितनी कसौटियों में कसते है , बुरे व्यक्ति को उतनी कसौटियों में क्यों नहीं कसते ? हमारा मन ये मानने को कभी तैयार ही नहीं हो पाता है कि सामने वाला हमसे ज्यादा अच्छा है या हो सकता है या सामने वाले में हमसे अधिक खूबियां है,वो हमसे अधिक अच्छा प्रदर्शन कर सकता है। ये सब हम मानने को क्यों तैयार नहीं हो पाते ,ये प्रश्न बड़ा ही विचारणीय है।
हमारे देश के युगपुरुष विवेकानंद की अच्छाइयों को पहले विदेश में स्वीकारा गया उसके बाद ही हमारे देश के लोगो ने उन्हें सम्मानित किया । ये बड़े ही दुःख की बात है हमारे लिये। हम अपने आस- पास रहने वाले हीरे-जवाहरातों की पहचान क्यों नहीं कर पाते ? क्यों हम औरों के घरों की ओर नजरें गड़ाए बैठे रहते है? हालाकि प्रतिभा किसी सम्मान की भूखी नहीं होती और सच्चाई को अंततः स्वीकार करना ही पड़ता है। ईसामसीह की अच्छाइयों को हमने इतना परखा कि उनके हाथों और पैरो में हमने बड़े-बड़े कील ठोक दिये। सीता मैया की अच्छाई को हमने इतना जांचा परखा कि उन्हें पुनः धरती में समाना पड़ा । आखिर हम और कितना दुःख देंगे अच्छे लोगों को,इसका कोई अंत है की नहीं ?
दोस्तों हमें जागना होगा। हमें हर बच्चे में विवेकानंद को देखना होगा। हर व्यक्ति की अच्छाई को देखनी होगी। औरों की अच्छाइयों का हमें सम्मान करना होगा ,तभी हमारा देश आगे बढ़ेगा। यदि हम बकरी की भांति मैं - मैं करेंगे तो हमारा विनाश निश्चित रूप से शीघ्र ही हो जाएगा। हमें दूसरों को सदैव सम्मानित करना चाहिए। कभी किसी को अपमानित नहीं करना चाहिए। हमें किसी के अंदर इतनी नफरत नहीं भरना चाहिए कि वह ईसा मसीह के हाथों और पैरों में कील ठोंक दे या फिर माता सीता को धरती में समां जाने को मजबूर कर दे या फिर औरों को सम्मानित करते हुए देखकर मजबूरी में उसे किसी का सम्मान करना पड़े। दोस्तों कभी भी ऐसी स्थिति निर्मित न हो इसके लिए जरुरी है कि हम अपने आस -पास रहने वाले लोगों की अच्छाईयों को ख़ुशी-ख़ुशी स्वीकार कर ले।
जय हिन्द
हमारे देश के युगपुरुष विवेकानंद की अच्छाइयों को पहले विदेश में स्वीकारा गया उसके बाद ही हमारे देश के लोगो ने उन्हें सम्मानित किया । ये बड़े ही दुःख की बात है हमारे लिये। हम अपने आस- पास रहने वाले हीरे-जवाहरातों की पहचान क्यों नहीं कर पाते ? क्यों हम औरों के घरों की ओर नजरें गड़ाए बैठे रहते है? हालाकि प्रतिभा किसी सम्मान की भूखी नहीं होती और सच्चाई को अंततः स्वीकार करना ही पड़ता है। ईसामसीह की अच्छाइयों को हमने इतना परखा कि उनके हाथों और पैरो में हमने बड़े-बड़े कील ठोक दिये। सीता मैया की अच्छाई को हमने इतना जांचा परखा कि उन्हें पुनः धरती में समाना पड़ा । आखिर हम और कितना दुःख देंगे अच्छे लोगों को,इसका कोई अंत है की नहीं ?
दोस्तों हमें जागना होगा। हमें हर बच्चे में विवेकानंद को देखना होगा। हर व्यक्ति की अच्छाई को देखनी होगी। औरों की अच्छाइयों का हमें सम्मान करना होगा ,तभी हमारा देश आगे बढ़ेगा। यदि हम बकरी की भांति मैं - मैं करेंगे तो हमारा विनाश निश्चित रूप से शीघ्र ही हो जाएगा। हमें दूसरों को सदैव सम्मानित करना चाहिए। कभी किसी को अपमानित नहीं करना चाहिए। हमें किसी के अंदर इतनी नफरत नहीं भरना चाहिए कि वह ईसा मसीह के हाथों और पैरों में कील ठोंक दे या फिर माता सीता को धरती में समां जाने को मजबूर कर दे या फिर औरों को सम्मानित करते हुए देखकर मजबूरी में उसे किसी का सम्मान करना पड़े। दोस्तों कभी भी ऐसी स्थिति निर्मित न हो इसके लिए जरुरी है कि हम अपने आस -पास रहने वाले लोगों की अच्छाईयों को ख़ुशी-ख़ुशी स्वीकार कर ले।
जय हिन्द
No comments:
Post a Comment