Saturday, May 2, 2015

ओ शहंशाहों

मत घसीटो आबरू को तुम,
यूँ राहों में ओ शहंशाहों !
डूब जाओगे तुम उनकी ,
आहों में ओ शहंशाहों !
छोड़ के बैठे हो तुम , 
घर के चिरागों को , 
जिसकी पनाहों में ओ शहंशाहों ,
हो न जाए कही अँधेरा , 
उस घर की राहों में ओ शहंशाहों ! 
जा न पाएंगे ये बच्चे ,
घर से निकलकर , फिर घर की तरफ ,
उनकी राहों में यूँ काँटे ,
तुम न बिछाओ ओ शहंशाहों ! 
कितने प्रयोग करोगे तुम इन , 
नन्हीं-नन्हीं  जानों पर ?
अपनी जान बचाने को , 
न लो इनकी जानें ओ शहंशाहों ! 
नजरें डालो ज़रा , 
अपनी गिरहबान पर ,
 गुनाहों का पिटारा ,
नजर आएगा तुम्हें अपने अंदर ,
औरों की गिरहबान पर कीचड़ , 
इस तरह न उछालो ओ शहंशाहों ! 
इस देश को बचाने अब , 
नहीं आएंगे बापू फिर , 
हो सके तो इस देश को अब , 
बचालो ओ शहंशाहों !   

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