मत घसीटो आबरू को तुम,
यूँ राहों में ओ शहंशाहों !
डूब जाओगे तुम उनकी ,
आहों में ओ शहंशाहों !
छोड़ के बैठे हो तुम ,
घर के चिरागों को ,
जिसकी पनाहों में ओ शहंशाहों ,
हो न जाए कही अँधेरा ,
उस घर की राहों में ओ शहंशाहों !
जा न पाएंगे ये बच्चे ,
घर से निकलकर , फिर घर की तरफ ,
उनकी राहों में यूँ काँटे ,
तुम न बिछाओ ओ शहंशाहों !
कितने प्रयोग करोगे तुम इन ,
नन्हीं-नन्हीं जानों पर ?
अपनी जान बचाने को ,
न लो इनकी जानें ओ शहंशाहों !
नजरें डालो ज़रा ,
अपनी गिरहबान पर ,
गुनाहों का पिटारा ,
नजर आएगा तुम्हें अपने अंदर ,
औरों की गिरहबान पर कीचड़ ,
इस तरह न उछालो ओ शहंशाहों !
इस देश को बचाने अब ,
नहीं आएंगे बापू फिर ,
हो सके तो इस देश को अब ,
बचालो ओ शहंशाहों !
यूँ राहों में ओ शहंशाहों !
डूब जाओगे तुम उनकी ,
आहों में ओ शहंशाहों !
छोड़ के बैठे हो तुम ,
घर के चिरागों को ,
जिसकी पनाहों में ओ शहंशाहों ,
हो न जाए कही अँधेरा ,
उस घर की राहों में ओ शहंशाहों !
जा न पाएंगे ये बच्चे ,
घर से निकलकर , फिर घर की तरफ ,
उनकी राहों में यूँ काँटे ,
तुम न बिछाओ ओ शहंशाहों !
कितने प्रयोग करोगे तुम इन ,
नन्हीं-नन्हीं जानों पर ?
अपनी जान बचाने को ,
न लो इनकी जानें ओ शहंशाहों !
नजरें डालो ज़रा ,
अपनी गिरहबान पर ,
गुनाहों का पिटारा ,
नजर आएगा तुम्हें अपने अंदर ,
औरों की गिरहबान पर कीचड़ ,
इस तरह न उछालो ओ शहंशाहों !
इस देश को बचाने अब ,
नहीं आएंगे बापू फिर ,
हो सके तो इस देश को अब ,
बचालो ओ शहंशाहों !
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